कोटा
हम सेल्यूट करते हैं उस नारी शक्ति को जिसने इस महामारी के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सेल्यूट करते हैं उस आदि शक्ति को जिसने कोरोना के पीक समय में फ्रंट फुट पर अदृश्य शत्रु से लड़ने के लिए हमारे सामने ढाल बनकर खड़ी हो गई। उस दुर्गा रुपी अवतार को जिसने घर घर जाकर स्क्रीनिंग कर कोरोना के खतरे को टाला। कभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में गली गली घूमकर जागरूक किया तो कभी क्वारेन्टीन सेंटर में आइसोलेट मरीजों के लिए राशन पानी की व्यवस्था की। ऐसी भी स्वास्थ्यकर्मी रही जो हमारा जीवन बचाने के चक्कर में खुद कई बार संक्रमित हो गई। इसके बाद भी हार नही ंमानी। इस लड़ाई में कुछ समय लड़खड़ाई। फिर संभलकर उठ खड़ी हो गई। महामारी से निजात दिलाने के लिए भले ही वैक्सीन आ गई है। इसके बावजूद भी नारी शक्ति का योगदान कम नहीं है। क्योंकि, इसको आमजन तक पहुंचाना कम चुनौती नहीं है। शहर से गांव तक हर बूथ में महिला स्वास्थ्यकर्मी फं्रट फुट पर आकर सेवाएं दे रही है। बस मन में एक जज्बा है कि मेरे कोटा से महामारी का अंत हो। आज मिलिए उस नारी शक्ति से जिसने हमें कोरोना की जंग में जीत की दहलीज तक पहुंचाया। पढ़िए संर्घष की कहानी स्वयं की जुबानी।
पॉजीटिव होने के बाद दोगुने जोश से काम किया
22 मार्च को लॉक डाउन लग गया था। सभी लोग घरों में कैद में हो गए थे, लेकिन यह लॉक डाउन शहर के लोगों के लिए था। हमारे लिए ड्यूटी और बढ़ गई थी। लोग घरों से बाहर जाने में कतरा रहे थे। उस समय लोगों के बीच जाकर स्क्रीनिंग की है। शुरू में सर्वे सुपर विजन किया। उसके बाद कांटेक्ट ट्रेसिंग का काम संभाला। कोरोना पेशेंट की हिस्ट्री लेना और उनके कांटेक्ट में आए हर सदस्य की कोरोना जांच करवाने के लिए कंट्रोल रूम को इन्फॉर्म करना । 6 महीने तक ड्यूटी की फिर होमआइसोलेशन का काम संभाला। पति की पोस्टिंग इंदौर थी। 5 माह तक दोनों ड्यूटी के कारण आपस में मिल नहीं पाए। सितंबर में खुद कोरोना पॉजिटिव हो गई। तब 3 साल की बेटी से दूर रहना सबसे मुश्किल था, लेकिन बहुत जरूरी भी था। रिकवर होकर में फिर से ड्यूटी में लग गई। अब तो दुगुने जोश से काम किया। खुशी है कि अब धीरे धीरे सब ठीक हो रहा है। वैक्सीन भी आ गई।
– डॉ मेघा शर्मा, आरबीएसके
घर घर जाकर सैंपलिंग की
एक समय ऐसा था कोविड मरीज वाली गली में लोग घुसते नहीे थे। रास्ता बदल लेते थे, लेकिन मेरी ड्यूटी उनकी सैंपलिंग में थी। कोई मरीज पॉजीटिव आने के बाद तुरंत घर पहुंचना होता था। सारे परिवार को आइसोलेट करते थे। साथ में घर-घर भी स्क्रिनिंग भी की। एक समय तो खुद पॉजीटिव हो गई। मेरे साथ में परिवार के लोग भी पॉजीटिव हो गए। सभी लोग डर गए थे, लेकिन लोगों की सेवा के सामने अपना दु:ख कम कर लिया। मन में कोविड की जंग को जीतने का जज्बा था। इसके चलते जुनून था। कोविड से रिकवर हो गई। इसके बाद तो कोविड का डर नहीं लगा। बाद में कंट्रोल रूम में लगा दिया। यहां भी लोग की कॉल पर उनके लिए दवाएं भेजना। अस्पताल भेजना। सब व्यवस्थाएं शामिल थी। अब काफी खुश हूं। क्योंकि, कोविड की आधी से अधिक जंग जीत गए है। इससे मेरा भी योगदान रहा है।
– अनिता नागर, नर्सिंग आॅफिसर,
रोने लगते थे मरीज
कोविड के समय अचानक लॉक डाउन लग लग गया। कोविड मरीजों के लिए न्यू मेडिकल कॉलेज खोल दिया। हल्के लक्षणों वाले मरीजों के लिए आलनिया सेंटर शुरू किया था। यहां पर क्वारेंटाइन करते थे। इनके साथ मेरी ड्यूटी थी। शुरू में कोविड गजब डर था। नाम सुनते ही रौंगटे खडेÞ हो जाते थे। यहां पॉजीटिव मरीज आने के बाद रोने लगते थे। उनको सांत्वना देती थी। उनका मनोरंजन करती। दवाएं पहुंचाना। अन्य उनकी मदद करना काम था। रोज कोटा से वहां जाना संघर्ष से कम नहीं था। क्योंकि, लॉक डाउन से साधन नहीं थे। हालांकि, परिजनों ने मदद की।
– राधा यादव, एएनएम, उप स्वास्थ्य केंद्र काल्याकुई
2 साल के बच्चे से रही दूर
कोविड शुरू होते ही मेरी ड्यूट शुरू हो गई थी। उस समय शहर में कोविड का डर था। लोग घरों में कैद होकर रह गए थे। इसके बावजूद हमारी टीम ने हर घर में जाकर सर्वे किया। कब सुबह होती कब रात। इसका पता नहीं चलता था। शहर में कोई नया व्यक्ति आने के बाद उसकी सूचना तुरंत विभाग को देना। करीब 4 माह तक तो रात-दिन एक कर दिया। दिनभर ड्यूटी करती। शाम को आने के बाद अलग कमरे में रहती। 2 साल का बच्चा पास आने की जिद करता, लेकिल डर के मारे दूर से निहारती। अब जाकर स्थिति सुधरी है। अभी भी दो माह से कोविड रोकथाम के लिए टीकाकरण में लगी हुई हूं। अब तक एक हजार से अधिक लोगों को टीका लगा चुकी हूं। कोविड जंग में मेरा भी रोल रहा। यह सोचकर खुशी मिलती है।
– अनुसुईया मीना, एएनएम, विज्ञान नगर डिस्पेंसरी
दोहरी भूमिका निभाई
मार्च में कोविड का आगमन हो गया था। हालांकि, कोटा में मरीज नहीं थे। लेकिन, विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी थी। इएसआई अस्पताल में ड्यूटी थी। बडेÞ अस्पतालों में जाने से लोग कतराते थे। ऐसे में यहां मरीजों का दबाव बढ़ गया था। कोविड के पूरे समय में ड्यूटी दी। अचानक पॉजीटिव हो गई। मेरे साथ पूरा पॉजीटिव हो गया, लेकिन हार नहीं मानी। आखिर में कोविड को मात दी। इस दौरान बेटी भी नेशनल चेंपियनशिप की तैयारी कर रही थी। ड्यूटी के साथ उसको भी टेÑनिंग दिलवा रही थी। उसका सपोर्ट करने का ही परिणाम था कि राज्य स्तरीय चैपिंयनशिप में अव्वल रही।
– डॉ. अर्चना मीना, सीनियर आॅफिसर, ईएसआई अस्पताल
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